प्रशांत महासागर में हलचल: ला-नीना की विदाई और अल-नीनो का उदय
भारतीय कृषि और अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाले मानसून को लेकर वर्ष 2026 के लिए शुरुआती पूर्वानुमान चिंताजनक संकेत दे रहे हैं। मौसम विज्ञानियों के अनुसार, वर्तमान में सक्रिय ‘ला-नीना’ (La Niña), जो भारत में प्रचुर वर्षा का कारक माना जाता है, वह फरवरी 2026 तक समाप्त हो जाएगा। इसके बाद मार्च से मई के दौरान प्रशांत महासागर ‘तटस्थ’ (Neutral) स्थिति में रहेगा। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय मौसम मॉडलों (ECMWF और ऑस्ट्रेलियाई मॉडल) के डेटा विश्लेषण से यह स्पष्ट हो रहा है कि जून 2026 से प्रशांत महासागर के ‘नीनो 3.4’ इंडेक्स में तापमान तेजी से बढ़ना शुरू होगा। तापमान में यह वृद्धि ‘अल-नीनो’ (El Niño) के आगमन का संकेत है, जो मानसून के दूसरे भाग (जुलाई-सितंबर) में भारत के लिए सूखे जैसी स्थिति पैदा कर सकता है।
आईओडी (IOD) की स्थिति और मानसूनी हवाओं पर प्रभाव
मानसून को प्रभावित करने वाला दूसरा प्रमुख कारक ‘हिंद महासागर द्विध्रुव’ (Indian Ocean Dipole – IOD) है। विशेषज्ञों का कहना है कि मानसून की शुरुआत में आईओडी की स्थिति तटस्थ रहने वाली है। जब आईओडी ‘पॉजिटिव’ होता है, तो वह अल-नीनो के नकारात्मक प्रभाव को कम करने में मदद करता है, लेकिन 2026 की शुरुआत में ऐसी कोई स्थिति नहीं दिख रही है। परिणामस्वरूप, समुद्र से आने वाली मानसूनी हवाएं (Trade Winds) कमजोर पड़ सकती हैं। यदि मानसूनी हवाएं कमजोर होती हैं, तो बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में बनने वाले कम दबाव के क्षेत्र और चक्रवाती सिस्टम कम प्रभावी होंगे, जिसका सीधा असर मध्य और उत्तर भारत की वर्षा पर पड़ेगा।
ऐतिहासिक साक्ष्य और संभावित सूखे का खतरा
ऐतिहासिक आंकड़ों का विश्लेषण करें तो वर्ष 1871 से लेकर 2023 तक का रिकॉर्ड यह बताता है कि अल-नीनो का आना भारत के लिए शुभ नहीं रहा है। बीते 150 से अधिक वर्षों में केवल चार बार ऐसा हुआ है जब अल-नीनो की उपस्थिति के बावजूद देश में सामान्य वर्षा हुई हो। अधिकांश मामलों में, अल-नीनो के सक्रिय होते ही देश के विभिन्न राज्यों में वर्षा का औसत 10% से 20% तक गिर जाता है। इसी वैज्ञानिक आधार पर वर्ष 2026 में देश के बड़े हिस्से में ‘सूखे’ (Drought) के हालात पैदा होने की प्रारंभिक संभावना जताई गई है। विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां खेती पूरी तरह वर्षा जल पर निर्भर है, वहां फसल चक्र प्रभावित हो सकता है।
निष्कर्ष और आगामी महीनों की चुनौतियों पर नजर
हालांकि यह मानसून का एक ‘प्रारंभिक’ या प्राथमिक अंदाज है, जिसमें अगले तीन से चार महीनों में कुछ बदलाव संभव हैं। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि अप्रैल और मई के महीने में स्थिति और भी स्पष्ट हो जाएगी। फिर भी, किसानों और नीति निर्माताओं को अभी से जल संरक्षण और वैकल्पिक फसल योजनाओं पर विचार शुरू कर देना चाहिए। यदि अल-नीनो का प्रभाव जुलाई और अगस्त के पीक महीनों में अधिक रहता है, तो खाद्य उत्पादन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। आने वाले महीनों में समुद्री तापमान की निगरानी इस पूर्वानुमान को और सटीक बनाने में मदद करेगी।





